वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />८ मई, २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नोएडा<br /><br />दोहा:<br />सिर राखे सिर जात है, सिर कटाये सिर होये।<br />जैसे बाती दीप की, कटि उजियारा होये।। (संत कबीर)<br /><br />प्रसंग:<br />"सिर राखे सिर जात है, सिर कटाये सिर होये।" संत कबीर ऐसा क्यों कह रहे है?<br />सिर राखे सिर जात है यहाँ सिर का क्या अर्थ है?<br />सत्य क्या है?<br />आत्मा क्या है?<br />क्या सत्य और संसार अलग-अलग हैं?